शनि का धनु राशि में प्रवेश 26 अक्तूबर 2017

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वैसे तो शनि महाराज 26 जनवरी 2017 को धनु राशि में प्रवेश कर गये थे लेकिन 6 अप्रैल को वो वक्री हो गये और 20 जून को वापिस वृश्चिक राशि में आ गये. उसके बाद 25 अगस्त को मार्गी होना शुरु कर दिया और अब 26 अक्तूबर को 15:20, या 15:22 या 15:27 पर धनु राशि में प्रवेश करेगें. जिनकी तुला राशि है उनकी शनि की साढ़ेसाती अब खतम हो जाएगी, वृश्चिक राशि वाले लोगों की कुंडली में साढ़ेसाती का तीसरा चरण आरंभ होगा. धनु राशि के लोगों की कुंडली में शनि की साढ़ेसाती का दूसरा चरण आरंभ होगा और मकर राशि के लोगों की कुंडली में शनि की साढ़ेसाती का ये पहला चरण शुरु हो जाएगा.

शनि की साढ़ेसाती का अर्थ है – साढ़ेसात साल क्योंकि शनि एक राशि में ढ़ाई साल रहता है और तीन चरणों में साढ़ेसाती चलती है. शनि की साढ़ेसाती के साथ कुछ लोगों की शनि की ढ़ैय्या भी चलती है, ढ़ैय्या का अर्थ है – ढ़ाई साल. जब जन्म कुंडली में चंद्र राशि से चौथे अथवा आठवें भाव से शनि का गोचर होता है तब इसे शनि की ढ़ैय्या कहा जाता है. 26 अक्तूबर 2017 से वृष राशि और कन्या राशि के लोगों की शनि की ढ़ैय्या आरंभ हो जाएगी.

शनि की साढ़ेसाती हमेशा खराब नही होती क्योंकि कुंडली के योग और दशाएँ भी महत्व रखती है. शनि महाराज एक राशि में ढ़ाई साल रहते हैं और कुंडली का एक पूरा चक्कर लगाने में उन्हें 30 साल लग जाते हैं. जब शनि महाराज चंद्रमा से एक राशि पहले जन्म कुंडली में गोचरवश आ जाते हैं तब साढ़ेसाती का आरंभ हो जाता है और तब शनि महाराज पिछले 30 सालों का हिसाब – किताब पूरा करते है. जो भी अच्छे-बुरे कर्म जातक ने किए हैं उनका लेखा-जोखा देते हैं. साढ़ेसाती सदा बुरी नहीं होती लेकिन शनि को लेकर अनेकों भ्रांतियाँ लोगों में फैली हुई है.

जैसे कुंदन आग में तपकर निखरता है ठीक वैसे ही साढ़ेसाती में व्यक्ति तपकर निखरता है. इस समय में व्यक्ति की जिम्मेदारियाँ बढ़ जाती है. भाग-दौड़ बढ़ जाती है, स्थान परिवर्तन होता है. जो चीजें ढ़र्रे पर चलती है उनमें परिवर्तन हो जाता है. साढ़ेसाती में कार्य भी रुके से लगते हैं लेकिन वास्तव में व्यक्ति की परीक्षा की घड़ी होती है और उसे अहसास होता है कि वाकई में उसके शुभचिन्तक कौन है और कौन नहीं है.

शनि की साढ़ेसाती में शनि के मंत्र जाप, शनि स्तोत्र, शनि कवच आदि का पाठ करना चाहिए. शनि मंदिर में जाने की बजाय पीपल के पेड़ को शनिवार के दिन जल में कच्चा दूध मिलाकर सींचना चाहिए. संध्या समय में सरसों के तेल का दीया जलाना चाहिए. शनिवार को शनि के व्रत भी रखे जा सकते हैं और संध्या समय में उड़द की दाल की खिचड़ी अथवा काले चले उबालकर खाये जा सकते हैं लेकिन ये भोजन फीका ही करना है, नमक का सेवन नहीं करना है.