एक गाँव में दो लड़कियाँ अपनी माँ के साथ रहती थी. वह नियम से हर रोज नितनेम की कथा कहती थी. एक दिन बेटी बोली की माँ मैं नितनेम की कहानी कहूँगी तो आज उसकी माँ ने कहा – ससुराल में तेरी ये कथा कौन सुनेगा? लेकिन उसकी जिद के आगे माँ की नहीं चली और उसने कहानी कह दी. कुछ समय बाद उसकी शादी हुई और वह ससुराल चली गई.
ससुराल आने के बाद उसने एक-एक कर सभी को कहा कि मेरी नितनेम की कहानी सुन लो लेकिन हर किसी ने कोई ना कोई बहाना बनाकर उसे टाल दिया. कोई उसकी कहानी नहीं सुनता जिससे वह भूखी ही रह जाती. एक दिन उसकी एक पड़ोसन ने कहा कि चल मैं तेरी कहानी सुनूँगी तो उसने पड़ोसन को अपनी कहानी सुनाई और रोटी खाई. अब रोज वह पड़ोसन को अपनी नितनेम की कहानी सुनाती.
एक दिन उस लड़की की ननद ने कहा कि माँ यह पड़ोसन के कहने से तो खाना खा लेती है लेकिन जब हम खाने को कहते हैं तब नहीं खाती है. तब सास ने कहा कि ठीक है जब पड़ोसन घर आये तो मना कर देना. पड़ोसन ने अपने पति से यह बात कही तो पति बोला कि उसकी सास अगर मना कर तब कहानी सुनने मत जाना. अगले दिन पड़ोसन गई तो लड़की की सास ने उसे घर आने से मना कर दिया. अब फिर से बहू की कहानी कोई नहीं सुनता था.
एक दिन उसके ससुर ने उसकी सास से पूछा कि बहू कैसी है? तो उसने कहा कि बाकी सब तो ठीक है, काम कर लेती है लेकिन खाना नहीं खाती है. ससुर ने कहा कि बड़े घर की बेटी है शायद काम करने से थक जाती होगी इसलिए तुम उससे काम मत कराया करो. काम ना करने पर भी बहू कुछ नहीं खाती जिससे धर्मराज जी सकते में पड़ गए कि ऎसा क्या हो रहा है जो मेरा आसन डोल रहा है! उन्होंने कहा कि धरती पर कौन सी नगरी है जिस पर एक प्राणी भोजन नहीं कर रहा है? उसे बुलाकर लाओ.
स्वर्ग से विमान आया तो उसे देख सास कहने लगी – मैं चलूँ तेरे साथ बहू? तो बहू ने कहा तुम्हें तो बहुत काम था लेकिन मेरी कहानी सुनने का ही समय नहीं था. जेठानी ने जाने को कहा तो बहू बोली – तुम्हें तो मालिक का खाना बनाना है. ननद ने जाने को कहा तो वह बोली कि तुम्हें तो अपने खिलौनो से खेलने से ही फुरसत नहीं है. अब पड़ोसन से उससे कहा कि मैं चलूँ? तब वह बोली कि हाँ तुम मेरे साथ चलो क्योंकि तुमने ही मेरी कहानी सुनी है. पड़ोसन अपने पति के पास गई तो वह बोला कि तू तो बड़ी भाग्यशाली है जो तू जीते जी ही स्वर्ग में जा रही है.
हे नितनेम बाबा ! जैसे उसे मोक्ष मिला वैसे ही सभी को मोक्ष मिले.