
वर्तमान समय में तलाक के योग बढ़ते जा रहे हैं, इसके बहुत से कारण होते हैं, जिससे पति-पत्नी दोनों ही आपस में सामंजस्य नहीं रख पाते हैं और वैचारिक मतभेद इतने ज्यादा हो जाते हैं कि नौबत तलाक तक पहुंच जाती है. तलाक में कोर्ट केस भी चलता है इसलिए सप्तम भाव जीवनसाथी के लिए तो छठा भाव कोर्ट केस के लिए देखा जाता है. विवाह के बाद यदि छठे भाव से संबंधित दशा आती है तब व्यक्ति के झगड़े होने व तलाक होने की संभावना अधिक बनती है. इसे अपने पाठको को एक उदाहरण कुंडली से समझाने का प्रयास करते हैं.
जन्म कुंडली – Janma Kundali – Birth Chart
जिस व्यक्ति की जन्म कुंडली की विवेचना हम करने जा रहे हैं उसका तलाक विवाह के 26 वर्षों के बाद हुआ. जातक की मिथुन लग्न की कुंडली है, दूसरे भाव में कर्क राशि में शुक्र व मंगल हैं. चतुर्थ भाव में कन्या राशि में राहु है, बृहस्पति वृश्चिक राशि में छठे भाव में है, सप्तम भाव में धनु राशि में शनि है, केतु दसवें भाव में मीन राशि में स्थित है, बारहवें भाव में वृष राशि में सूर्य, चंद्र व बुध हैं.
जिस समय इनका विवाह हुआ उस समय राहु/बृहस्पति/बुध की दशा चल रही थी. राहु चतुर्थ भाव में कन्या राशि में है और राहु को ब्याहू भी कहा जाता है अर्थात राहु की दशा में विवाह अकसर हो जाता है. अन्तर्दशानाथ बृहस्पति सप्तम भाव के स्वामी हैं अर्थात विवाह स्थान के स्वामी हैं और प्रत्यंतर दशानाथ बुध के साथ संबंध बना रहे हैं और बुध बारहवें भाव में स्थित है. अन्तर्दशानाथ और प्रत्यंतर दशानाथ छठे व बारहवें भाव में स्थित है जो विवाह की सफलता पर प्रश्न चिन्ह लगा रहे हैं.
विवाह के कुछ वर्ष बाद अक्तूबर 1996 से इनकी जन्म कुंडली में गुरु की महादशा आरंभ हो गई और गुरु इनकी जन्म कुंडली में सप्तम भाव के स्वामी होकर अपने भाव से एक भाव पीछे स्थित हैं जिससे सप्तम भाव का व्यय हो रहा है. विवाह के कारक शुक्र भी नीच के मंगल के साथ दूसरे भाव में स्थित है. साथ ही सप्तम भाव में शनि भाग्येश व अष्टमेश होकर स्थित हैं. इस जातक की पत्नी इनसे छ: वर्ष बड़ी है और इसकी पुष्टि इनकी जन्म कुंडली से हो रही है क्योकि शनि अपने से बड़े व्यक्ति को दर्शाता है और इनके सप्तम भाव में शनि स्थित है.
जिस समय जातक का तलाक हुआ उस समय इनकी कुंडली में गुरु/मंगल/शनि की दशा चली हुई थी. महादशानाथ गुरु सप्तम भाव के स्वामी होकर छठे भाव में है जो कोर्ट केस दिखाता है. अन्तर्दशानाथ मंगल छठे भाव के स्वामी होकर दूसरे भाव में अपनी नीच राशि में स्थित हैं. छठे भाव का संबंध कुटुम्ब भाव से बन रहा है जो परिवार से संबंधित गतिविधि को दिखा रहा है. इसका अर्थ यह भी हुआ कि परिवार को लेकर जातक को कोर्ट केस का सामना करना पड़ सकता है. शनि एक पृथकतावादी ग्रह है और भाग्येश व अष्टमेश होकर सप्तम में स्थित है. इसलिए शनि की प्रत्यंतर दशा जो सप्तम से संबंध बना रही है, में जातक का तलाक हो गया.
नवांश कुंडली – Navansh Kundali – D-9 Chart
विवाह के समय की दशा को इनकी नवांश कुंडली में भी देखा जाना चाहिए जिससे घटना की पुष्टि भली भाँति हो जाती है. नवांश कुंडली का मीन लग्न है, राहु चतुर्थ भाव में, पंचम भाव में सूर्य, शनि, बुध व गुरु स्थित है. शुक्र छठे भाव में स्थित है, मंगल सप्तम भाव में, केतु दशम भाव में तो चंद्रमा बारहवें भाव में स्थित है. विवाह के समय जातक की राहु/बृहस्पति/बुध की दशा थी. राहु नवांश में बुध की राशि में स्थित है और बुध नवांश कुंडली के सप्तमेश भी हैं. बृहस्पति नवांश कुंडली के लग्नेश है तो यह सही है, प्रत्यंतर दशानाथ बुध नवांश कुंडली के सप्तमेश है ही.
जब इनका तलाक हुआ तब बृहस्पति/मंगल/शनि की दशा थी, बृहस्पति नवांश कुंडली के लग्नेस होकर नवांश कुंडली के षष्ठेश सूर्य के साथ स्थित हैं. मंगल एक क्रूर ग्रह होकर नवांश कुंडली के सप्तम भाव में स्थित होकर तोड़ फोड़ मचा ही रहे हैं और साथ ही शनि से भी दृष्ट हैं. प्रत्यंतर दशानाथ शनि पृथकतावादी ग्रह हैं और बृहस्पति, बुध, सूर्य के साथ नवांश कुंडली के पंचम भाव में स्थित है और सप्तम भाव को दृष्टि देकर उसे पीड़ित भी कर रहे हैं.
जन्म कुंडली व नवांश कुंडली दोनो में ही छठे भाव की दशा का प्रभाव सप्तम के साथ बनने के कारण ही विवाह के इतने लंबे समय के बाद भी तलाक हो गया.