माघ माहात्म्य – सत्ताईसवाँ अध्याय
प्रेत कहने लगा कि हे पथिक! मैं इस समय तुम्हारे पास जो यह गंगा जल हैं, उसे माँगता हूँ क्योंकि
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प्रेत कहने लगा कि हे पथिक! मैं इस समय तुम्हारे पास जो यह गंगा जल हैं, उसे माँगता हूँ क्योंकि
पिशाच कहने लगा कि हे मुनि! केरल देश का ब्राह्मण किस प्रकार मुक्त हुआ यह कथा कृपा करके विस्तारपूर्वक कहिए.
लोमश ऋषि कहने लगे कि जिस पिशाच को देवद्युति ने मुक्त किया वह पहले द्रविड़ नगर में चित्र नाम वाला
इतना कहकर भगवान अन्तर्ध्यान हो गए तब देवनिधि कहने लगे हे महर्षि! जैसे गंगाजी में स्नान करने से मनुष्य पवित्र
दत्तात्रेय जी कहते हैं कि हे राजन! एक प्राचीन इतिहास कहता हूँ. भृगुवंश में ऋषिका नाम की एक ब्राह्मणी थी
श्री वशिष्ठजी कहने लगे कि हे राजन! अब मैं माघ के उस माहात्म्य को कहता हूँ जो कार्तवीर्य के पूछने