श्रीगणेश मनाय के शाखा करूँ बखान । वर कन्या चिरंजीव हों कृपा करे भगवान ।
जनकपुरी के राव हैं राजा जनक सुजान । कन्या ब्याह रचाय के यह प्रण मन ठान ।
परशुराम के धनुष को जो कोई लेय उठाए । सीताजी उसको वरें काय सुफल हो जाए ।
देश देश के भूप सुन आए जनक द्वार । धनुष बाण उठत नहीं सबने मानी हार ।।
नारद मुनि आए जभी राजो कीनो प्रश्न । सीता वर है कौन सा रामचंद्र हरि विश्न ।।
विश्वामित्र लेकर चले लक्ष्मण श्रीभगवान । सब राजा देखे खड़े धनुष तोड़ दिया तान ।।
फूलों की माला गले दीनी सीता डार । सब राजा घर कूँ चले अपने मन में हार ।।
पंडित कूँ बुलवाए के लगन लिखौ शुभ वार । अनुराधा नक्षत्र धर और लिखा परिवार ।।
गौरी गायत्री सभी कुलवन्ती सब नर । मंगल गावें कुशल वधू बरसत रंग अपारा ।।
घोड़ो सभग मंगाए कर कलंगी पाखर जीन । हीरे मोतियों का सेहरा मुकुट धरौ परवीन ।।
चंवर करे सेवल खड़े दशरथ करें सामान । चली बरात भगवान की फरकन लगे निशान ।।
जनकपुरी देखें खड़ी मन में खुशी अपार । आई बरात भगवान की शोभा अपरंपार ।।
पंडित को बुलवा कर कलश गणेश ले हाथ । सब राजा मिलने चले जनकराव के साथ ।।
राजा दशरथ से मिले जनक प्रीत कर जाएं । दूल्हे की सेवल करी जनवासे बिठलाए ।।
लीक चुका राजा चले जनम राव के साथ । फेरों की त्यारी करी गुरु वशिष्ठ के हाथ ।।
सीता श्रीभगवान को वेदी दिए बिठाए । वेद पढ़े मुनि लायकर हो रहे जय जयकार ।।
गौरी गायत्री सभी कुलवन्ती सब नार । मृगा नयजी दें सीठने शोभा अपरंपार ।।
कन्या का संकल्प कर राजा जनक सुजाना । गुरु वशिष्ठ बोले जभी कहें स्वस्ति भगवान ।।
कन्या विवाह रचाकर दीजो वित्त सामान । स्वीकार करो सब पंच मिल कृपा करो भगवान ।।