काशी-स्तुति

सेइत सहित सनेह देह भरि, कामधेनु कलि कासी। समनि सोक-संताप-पाप-रुज, सकल-सुमंगल-रासी।।1।। अर्थ – इस कलियुग में काशी रुपी कामधेनु का

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श्रीसिद्धसरस्वती स्तोत्रम्

दोर्भिर्युक्ताश्चतुर्भि: स्फटिकमणिमयीमक्षमालां दधाना हस्तेनैकेन पद्मं सितमपि च शुकं पुस्तकं चापरेण । या सा कुन्देन्दुशंखस्फटिकमणिनिभा भासमाना समाना सा मे वाग्देवतेयं निवसतु

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दशमहाविद्या – भुवनेश्वरी

देवी भागवत में वर्णित मणिद्वीप की अधिष्ठात्री देवी हृल्लेखा “ह्रीं” मन्त्र की स्वरूपा शक्ति और सृष्टि क्रम में महालक्ष्मी स्वरूपा

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