काशी-स्तुति
सेइत सहित सनेह देह भरि, कामधेनु कलि कासी। समनि सोक-संताप-पाप-रुज, सकल-सुमंगल-रासी।।1।। अर्थ – इस कलियुग में काशी रुपी कामधेनु का
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सेइत सहित सनेह देह भरि, कामधेनु कलि कासी। समनि सोक-संताप-पाप-रुज, सकल-सुमंगल-रासी।।1।। अर्थ – इस कलियुग में काशी रुपी कामधेनु का
दोर्भिर्युक्ताश्चतुर्भि: स्फटिकमणिमयीमक्षमालां दधाना हस्तेनैकेन पद्मं सितमपि च शुकं पुस्तकं चापरेण । या सा कुन्देन्दुशंखस्फटिकमणिनिभा भासमाना समाना सा मे वाग्देवतेयं निवसतु
नरक प्रदान करने वाले पाप कर्म गरुड़ उवाच गरुड़ जी ने कहा – हे केशव ! किन पापों के
दुसह दोष-दुख, दलनि, करु देवि दाया । विश्व-मूला-Sसि, जन-सानुकूलाSसि, कर शूलधारिणि महामूलमाया ।।1।। तडित गर्भांड्ग सर्वांड्ग सुन्दर लसत, दिव्य
देवी भागवत में वर्णित मणिद्वीप की अधिष्ठात्री देवी हृल्लेखा “ह्रीं” मन्त्र की स्वरूपा शक्ति और सृष्टि क्रम में महालक्ष्मी स्वरूपा
गरुड़ उवाच गरुड़ जी ने कहा – हे केशव ! यम मार्ग की यात्रा पूरी कर के यम के भवन