गोवर्धन पूजा अथवा अन्नकूट – 2023

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वर्ष 2023 में गोवर्धन पूजा अथवा अन्नकूट का त्यौहार 14 नवंबर दिन मंगलवार को मनाया जाएगा. दीवाली से दूसरे दिन सुबह सवेरे उठकर स्नानादि से निवृत हो गोबर से गोवर्धन महाराज बनाए जाते हैं. रसोई घर में अन्नकूट बनता हैं और गोवर्धन के सामने दीया जलाकर उन्हे अन्नकूट का भोग लगाया जाता है. रात में फिर से गोवर्धन की पूजा की जाती है और उनकी परिक्रमा भी करते हैं. सभी लोग अपने रीति के अनुसार गोवर्धन की पूजा करते हैं. इस पर्व को पशु पालने वाले लोगों द्वारा मनाए जाने का चलन हैं. पूजा के बाद गोवर्धन की आरती भी की जाती है जो इस प्रकार है – 

 

श्री गोवर्धन महाराज की आरती

श्री गोवर्धन महाराज, महाराज 

तेरे माथे मुकुट विराज रहयो । 

तो पे पान चढ़े, तो पे फूल चढ़े

और चढ़े दूध की धार, ओ धार । तेरे माथे……..

तेरे कानन में कुण्डल सोहे, 

तेरे गले वैजन्ती माल, ओ माल । तेरे माथे…….

तेरी सात कोस की परिकम्मा, 

तेरी दे रहे नर और नार, ओ नार । तेरे माथे…..

तेरे जतीपुरा में दूध चढ़त है

तेरी हो रही जै जै कार, ओ कार । तेरे माथे…..

तेरे चरणों में मानसी गंगा बहे

तेरी माया अपरमपार, ओ पार । तेरे माथे……

बृज मंडल जब डूब देखा, 

ग्वाल बाल सब व्याकुल देखे, 

लिया नख पर गिरवरधार, ओ धार । तेरे माथे……..

वृंदावन की कुंज गली में, 

वो तो खेल रह्यो नन्दलाल, ओ लाल । तेरे माथे…….

‘चन्द्र सखी’ भज बाल कृष्ण छवि, 

तेरे चरणों पै बलिहार, ओ हार । तेरे माथे……… 

 

गोवर्धन अथवा अन्नकूट की कथा 

एक बार भगवान कृष्ण ने देखा कि पूरे ब्रज धाम में विभिन्न व्यंजन तथा मिष्ठान्न बनाए जा रहे हैं. जब उन्होंने इसका कारण पूछा तो पता चला कि मेघ देवता देवराज इन्द्र की पूजा की तैयारी हो रही है क्योंकि इन्द्र की वर्षा से बारिश होगी तो गायों को चारा मिलेगा साथ ही जीविका के साधन बनेगें. सब बातें सुनकर कृष्ण इन्द्र की निंदा करने लगे और कहने लगे कि उसकी पूजा करो जो प्रत्यक्ष आकर पूजा की सामग्री स्वीकार करता हो. गोपो ने कृष्ण से कहा कि उन्हें ऎसी बात नहीं करनी चाहिए. कृष्ण फिर से बोले कि देवराज इन्द्र से ज्यादा शक्तिशाली तो यह गोवर्धन पर्वत है जो वर्षा का मूल कारण है, हमें इसकी पूजा करनी चाहिए. 

भगवान कृष्ण के वाग्जल में फंसकर सभी ब्रजवासियों ने धूम मचा दी. इसके बाद नन्दजी ने सभी ग्वाल-गोपांगनाओं सहित एक सभा में कृष्ण से पूछा कि इन्द्र की पूजा से दुर्भिक्ष का उत्पीड़न समाप्त होता है, चौमासे के सुंदर दिन आते हैं लेकिन गोवर्धन की पूजा से क्या लाभ होगा? इस पर कृष्ण जी ने गोवर्धन की प्रशंसा में बहुत से तर्क दिए और ब्रजवासियों की आजीविका का सहारा भी उसे ही सिद्ध कर दिखाया. सारा ब्रजमंडल उनकी बातों से अत्यधिक प्रभावित हो गया और सभी मिष्ठान्न तथा व्यंजनों का भोग गोवर्धन को लगा दिया गया जैसी विधि कृष्ण जी ने उनको बताई. 

भगवान कृष्ण की कृपा से ब्रजवासियों द्वारा अर्पित समस्त सामग्री को गिरिराज जी ने स्वीकार किया और उन्हें खूब आशीर्वाद दिया. सारे ब्रजवासी अपना पूजन सफल देखकर प्रसन्न हो रहे थे कि तभी नारद इन्द्र महोत्सव देखने की इच्छा से ब्रज आ जाते हैं लेकिन इन्द्र का पूजन ना देख वह पूछ बैठे कि ऎसा क्यूँ? तब ब्रज के वासी बताते हैं कि भगवान कृष्ण के कहने से इस साल से इन्द्र महोत्सव समाप्त कर दिया गया है और उसके स्थान पर गोवर्धन की पूजा की गई है. यह सब सुनते ही नारद मुनि उलटे पाँव ही लौट आए और इन्दलोक जाकर खिन्न अवस्था में इन्द्र से कहने लगे कि इधर आप महलों में सुख की नींद ले रहे हो और उधर तुम्हारी पूजा समाप्त कर गोवर्धन की पूजा हो रही है. 

नारद मुनि की कड़वी बातें सुनकर इन्द्र ने इसे अपना अपमान समझा और अपने मेघों को आज्ञा दी कि वे गोकुल में जाकर प्रलयकारी मूसलाधार बारिश से पूरे गाँव को नष्ट कर दें. यह सुनते ही प्रलयकारी बादल ब्रज की ओर उमड़ पड़े. अचानक आई इस वर्षा को देख सभी ब्रजवासी घबरा गए. सभी कृष्ण भगवान की शरण में गए और बोले कि इन्द्र हमारी नगरी को डुबो देना चाहता है अब हम क्या करें? श्रीकृष्ण ने उन्हे सांत्वना देते हुए कहा कि तुम लोग सभी अपनी गऊओं को लेकर गोवर्धन की शरण में चलो वही तुम्हारी सभी की रक्षा करेगें. 

सारे ग्वाल बाल गोवर्धन की तराई में पहुंच गए और श्रीकृष्ण भगवान ने गोवर्धन पर्वत को अपनी कनिष्ठिका अंगुली पर उठा लिया और सात दिन तक गोप-गोपिकाएँ उसकी छाया में सुखपूर्वक रहे और भगवान की कृपा से उन्हें एक छींटा तक नही लग पाया. इन्द्र को यह सब देख बहुत आश्चर्य हुआ और वह भगवान की महिमा को अब समझ चुके थे. अपनी गलती का भान होने पर वह भगवान कृष्ण के चरणों में गिरकर पश्चाताप करते हैं. सातवें दिन भगवान कृष्ण ने गोवर्धन पर्वत को नीचे रखा था इसलिए प्रतिवर्ष गोवर्धन की पूजा कर के अन्नकूट मनाने की आज्ञा भगवान कृष्ण ने सभी को दी. तभी से गोवर्धन पूजा के साथ अन्नकूट भी मनाया जाने लगा.