वर्ष 2023 में भैया दूज 15 नवंबर, दिन बुधवार को मनाई जाएगी. यह त्यौहार कार्तिक मास की शुक्ल पक्ष की द्वितीया को मनाया जाता है. इस दिन यमुना नदी में स्नान के साथ यमराज के पूजन का विशेष विधान है. इस दिन बहने अपने भाईयों को टीका कर के उन्हें सूखा नारियल देती हैं, उन्हें जिमाती है. बदले में भाई रुपये देते हैं और कई उपहार भी देते हैं. अपनी सामर्थ्यानुसार सब इस त्यौहार को मनाते हैं.
भैया दूज की कहानी
एक नगर में एक ब्राह्मण रहता था जिसकी दो संताने थी जिसमें से एक लड़का और दूसरी लड़की थी. लड़की बहुत ही सुशील थी वह कभी भूल से भी अपने भाई को भला-बुरा नहीं कहती थी. एक बार भाई अपनी बहन के घर आया तो वह चरखे पर सूत कात रही थी और सूत कातते हुए चरखे का तार टूट गया. वह बार-बार तार ठीक करती रही लेकिन उसने देखा ही नही कि भाई आया हुआ है. अचानक उसका ध्यान पीछे की ओर गया तो देखा कि उसका भाई आया हुआ है.
अपने भाई से गले मिलने के बाद वह पड़ोसन से उसके आदर-सत्कार का पूछने गई तो उसने तेल का चौका लगाकर घी में चावल पकाए लेकिन चौका सूखा नही और चावल पके नहीं. उसने फिर दूसरी पड़ोसन से पूछा तो
गोबर का चौका लगाकर दूध व पानी में चावल डालकर खीर बनाई और तब जाकर भाई को खिलाई. अगले दिन जब भाई जाने लगा तो उसने चक्की में आटा पीसा और आटे के साथ गलती से साँप भी पिस गया जिसका पता बहन को नहीं चल पाया. उसने उसी आटे के लड्डू बनाकर रास्ते में खाने के लिए भाई को दे दिये. भाई की यह प्यारी बहन अपने बच्चे को पालने में ही सोता छोड़ अपने भाई के रास्ते चल दी.
काफी दूर आने के बाद उसे अपना भाई एक पेड़ के नीचे सोता दिखा और पास में ही उसने पोटली रखी देखी. उसने सारे लड्डू फेंक दिए और भाई के साथ अपने पीहर चली गई. रास्ते में उसने बहुत भारी-भारी शिलाएँ उतरती देखी. उसने एक राहगीर से उन शिलाओं के बारे में पूछा तो उसने कहा कि जो बहन अपने भाई से कभी नाराज नहीं हुई हो उसके भाई ब्याह के समय ये शिलाएँ उसकी छाती पर रखी जाएंगी. कुछ दूर जाने पर नाग व नागिन मिलें. नाग बोला कि जिसकी छाती पर यह शिलाएँ रखी जाएंगी उसे हम खा जाएंगे. लड़की ने इसका उपाय पूछा तो वह बोले कि भाई के सब काम बहन करें और भाई-भाभी को कोसकर खूब गालियाँ निकालें तभी भाई बच पाएगा.
सभी बातें सुनकर रास्ते से ही वह अपने भाई को कोसने लगी. गालियाँ देती रही, पीहर पहुंचकर भी वह गालियाँ देती रही. उसके माँ-बाप को लड़की का यह व्यवहार अच्छा नहीं लगा. जब विवाह का लगन आया तो भाई को गाली देती हुई वह स्वयं घोड़ी पर बैठ गई. जैसे ही वह घोड़ी पर बैठी वैसे ही बड़ी-बड़ी शिलाएँ उड़ती हुई आई लेकिन पुरुष के स्थान पर स्त्री को देख वह वापिस चली गई. ऎसा देख बारात के सब लोग उसे अपने साथ ले गए. फेरों का समय आया तो उसने गंदी-गंदी गालियाँ भाई को देते हुए उसे धका दिया और स्वयं फेरे लेने लगी. वह सब काम स्वयं कर रही थी.
भाई की सुहागरात आई तो भाभी के साथ सोने भी वह चल दी. समय आने पर नाग-नागिन उसके भाई को डसने आए लेकिन वह जानती थी कि ऎसा होगा इसलिए उसने उन्हें मारने की सारी तैयारी पहले से ही कर ली थी. जैसे ही वह आए उन्हें मारकर जेब में रखकर तीन दिन तक सोई रही. घर के सारे मेहमान विदा हो गए तब उसकी माँ को याद आया कि उसे भी विदा करना है. विदा के समय माँ की उपेक्षा से वह गुस्से में बोली कि मैं इतनी नीच नहीं हूँ. उसने मरे हुए नाग-नागिन को दिखाया और बताया कि यह भाई-भाभी डसने आए थे. मैने अपनी जान पर खेल भाई की रक्षा की है.
बहन ने कहा कि इस भाई की रक्षा के लिए मैं अपने बच्चे को भी अकेला छोड़कर आई हूँ. मेरे भाई-भाई को किसी तरह का कष्ट ना हो यह कहकर वह वापिस घर लौटने लगी तो उसके भाई व माँ ने उसे रोका और आदर के साथ विदा किया.
भैया दूज के दिन कई स्थानों पर चित्रगुप्त की पूजा के साथ पुस्तकों तथा दवात की भी पूजा होती है.