कार्तिक में आंवले की महिमा 

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कार्तिक मास की शुक्ल पक्ष की चतुर्दशी को वैकुण्ठ चतुर्दशी भी कहा जाता है. इस दिन आंवले का पूजन किया जाता है. आंवले का वृक्ष समस्त पापों को नष्ट करने वाला होता है. वैकुण्ठ चतुर्दशी के दिन आँवले के वृक्ष की छाया में जाकर राधा सहित श्रीकृष्ण जी का पूजन करना चाहिए. इसके बाद भगवान को साष्टाँग नमस्कार करके आँवले के वृक्ष की एक सौ आठ प्रदक्षिणा (परिक्रमा) करनी चाहिए. उसके बाद ब्राह्मणों को भोजन कराकर यथाशक्ति उन्हें दक्षिणा देकर प्रसन्न करना चाहिए. ब्राह्मण के प्रसन्न होने पर श्रीहरि भी प्रसन्न हो जाते हैं. 

इस विषय में स्कन्दपुराण में भी एक कथा है – पूर्वकाल में जब सम्पूर्ण जगत एकार्णव जल में निमग्न हो गया था, सभी चराचर जीवों का नाश हो गया था. उस समय देवाधिदेव सनातन ब्रह्माजी अविनाशी परब्रह्म का जप करने लगे. जिससे उनके आगे श्वास निकला, इसके साथ ही भगवद दर्शन के अनुरागवश उनके नेत्रों से भी जल निकल आया. प्रेमाश्रुओं से वहाँ एक महान वृक्ष की उत्पत्ति हुई, जिसमें बहुत-सी शाखाएँ और उपशाखाएँ निकली हुई थी. वह वृक्ष फलों के भार से झुका था. सभी वृक्षों में सबसे पहले आँवला ही प्रकट हुआ इसलिए इसे “अदिरोह” कहा गया. 

इस प्रकार ब्रह्माजी ने सर्वप्रथम आँवले की उत्पत्ति की और उसके बाद सम्पूर्ण वनस्पति तथा मनुष्यों की सृष्टि की. देवता आदि की भी सृष्टि होने के उपरान्त सभी देवता उस स्थान पर गए, जहाँ आँवले का वृक्ष सभी वृक्षों में श्रेष्ठ है. इसका केवल स्मरण करने से ही मनुष्य को गोदान का फल प्राप्त हो जाता है. इसका दर्शन करने से दुगुना और फल खाने से तिगुना पुण्य प्राप्त होता है. अत: सदैव प्रयत्न करके आँवले के वृक्ष का सेवन करना चाहिए. भगवान का प्रिय होने के कारण इससे सभी पापों का नाश हो जाता है. समस्त मनोकामनाओं की सिद्धि के लिए भी आँवले के वृक्ष का पूजन करना चाहिए.  

कार्तिक मास में पूर्ण प्रयत्न करके आँवले के वृक्ष की छाया में बैठकर श्रीकृष्ण की मूर्ति के सामने कथा सुननी चाहिए. कार्तिक में आँवले तथा तुलसी की माला धारण करने वाले व्यक्ति को अनन्त पुण्य की प्राप्ति होती है. आँवले के वृक्ष की छाया में बैठकर दीपमाला अर्पित करनी चाहिए और तुलसी दल न होने पर आंवले की ही पूजा करनी चाहिए. जो व्यक्ति कार्तिक मास में आँवले के वृक्ष की छाया में ब्राह्मण दम्पत्ति को बिठाकर एक बार भोजन कराकर संतुष्ट करके स्वयं भी वहीं बैठकर भोजन ग्रहण करता है, उसे अन्न दोष से मुक्ति मिल जाती है. लक्ष्मी प्राप्ति की इच्छा रखने वाले मनुष्य को सदा आँवले के जल से स्नान करना चाहिए. 

नवमी, अमावस्या, सप्तमी और संक्रान्ति के दिन तथा रविवार, चन्द्रग्रहण व सूर्यग्रहण के अवसर पर आँवले के जल से स्नान नहीं करना चाहिए (स्नान वर्जित है). आँवले के वृक्ष की छाया में बैठकर पिण्डदान करने वाले मनुष्य पितर भगवान विष्णु के प्रसाद से मोक्ष को प्राप्त करते हैं. जिसके शरीर की हड्डियाँ आँवले के जल से धोई जाती हैं, वह फिर से गर्भ में नहीं आता. जिस घर में सदा आँवले का सेवन होता है और आँवला रखा रहता है वहाँ भूत-प्रेत, कूष्माण्ड तथा राक्षस नहीं आते. अत: स्कन्दपुराण तथा पद्मपुराण में आंवले की अनन्त महिमा कही गई है.