वर्ष 2020 में पितृ पक्ष श्राद्ध का आरंभ 1 सितंबर से हो रहा है. हर वर्ष आश्विन माह के आरंभ से ही श्राद्ध का आरंभ भी हो जाता है वैसे भाद्रपद माह की पूर्णिमा से ही श्राद्ध आरंभ हो जाता है क्योंकि जिन पितरों की मृत्यु तिथि पूर्णिमा है तो उनका श्राद्ध भी पूर्णिमा को ही मनाया जाता है. इसके बाद आश्विन माह की अमावस्या को श्राद्ध समाप्त हो जाते हैं और पितर अपने पितृलोक में लौट जाते हैं.
माना जाता है कि श्राद्ध का आरंभ होते ही पितर अपने-अपने हिस्से का ग्रास लेने के लिए पृथ्वी लोक पर आते हैं इसलिए जिस दिन उनकी तिथि होती है उससे एक दिन पहले संध्या समय में दरवाजे के दोनों ओर जल दिया जाता है जिसका अर्थ है कि आप अपने पितर को निमंत्रण दे रहे हैं और अगले दिन जब ब्राह्मण को उनके नाम का भोजन कराया जाता है तो उसका सूक्ष्म रुप पितरों तक भी पहुँचता है. बदले में पितर आशीर्वाद देते हैं और अंत में पितर लोक को लौट जाते हैं. ऎसा भी देखा गया है कि जो पितरों को नहीं मनाते वह काफी परेशान भी रहते हैं.
पितृ पक्ष श्राद्ध में ब्राह्मण भोजन से पहले 16 ग्रास अलग-अलग चीजों के लिए निकाले जाते हैं जिसमें गौ ग्रास तथा कौवे का ग्रास मुख्य माना जाता है. मान्यता है कि कौवा आपका संदेश पितरों तक पहुँचाने का काम करता है. भोजन में खीर का महत्व है इसलिए खीर बनानी आवश्यक है. भोजन से पहले ब्राह्मण संकल्प भी करता है. जो व्यक्ति श्राद्ध मनाता है तो उसके हाथ में जल देकर संकल्प कराया जाता है कि वह किस के लिए श्राद्ध कर रहा है. उसका नाम, कुल का नाम, गोत्र, तिथि, स्थान आदि सभी का नाम लेकर स्ंकल्प कराया जाता है. भोजन के बाद अपनी सामर्थ्यानुसार ब्राह्मण को वस्त्र तथा दक्षिणा भी दी जाती है.
यदि किसी व्यक्ति को अपने पितरों की तिथि नहीं पता है तो वह अमावस्या के दिन श्राद्ध कर सकता है और अपनी सामर्थ्यानुसार एक या एक से अधिक ब्राह्मणों को भोजन करा सकता है. कई विद्वानों का यह भी मत है कि जिनकी अकाल मृत्यु हुई है या विष से अथवा दुर्घटना के कारण मृत्यु हुई है उनका श्राद्ध चतुर्दशी के दिन करना चाहिए.
श्राद्ध 2020 तिथियाँ – Shraddh Dates 2020
अपने पितरों के प्रति श्रद्धा भावना रखना और पितृ तर्पण व श्राद्ध कर्म करना अति आवश्यक है. ऎसा करने से व्यक्ति स्वस्थ, समृद्ध, दीर्घायु, सुख-शान्ति पाता है. व्यक्ति का वंश आगे बढ़ता है और उत्तम संतान भी पाता है. पितरों के प्रति जो श्रद्धापूर्वक कार्य किया जाता है उसे ही “श्राद्ध” कहते हैँ.
दिनाँक(Dates) | दिन(Days) | Shraddh Tithis |
1 सितंबर | मंगलवार | प्रोष्ठपदी/पूर्णिमा का श्राद्ध |
2 सितंबर | बुधवार | प्रतिपदा का श्राद्ध |
3 सितंबर | बृहस्पतिवार | द्वितीया का श्राद्ध |
5 सितंबर | शनिवार | तृतीया का श्राद्ध |
6 सितंबर | रविवार | चतुर्थी का श्राद्ध |
7 सितंबर | सोमवार | पंचमी/भरणी का श्राद्ध |
8 सितंबर | मंगलवार | षष्ठी का श्राद्ध |
9 सितंबर | बुधवार | सप्तमी का श्राद्ध |
10 सितंबर | बृहस्पतिवार | अष्टमी का श्राद्ध |
11 सितंबर | शुक्रवार | नवमी/सौभाग्यवतीनां का श्राद्ध |
12 सितंबर | शनिवार | दशमी का श्राद्ध |
13 सितंबर | रविवार | एकादशी का श्राद्ध |
14 सितंबर | सोमवार | द्वादशी/सन्यासियों का श्राद्ध |
15 सितंबर | मंगलवार | त्रयोदशी/मघा श्राद्ध |
16 सितंबर | बुधवार | चतुर्दशी का श्राद्ध – चतुर्दशी तिथि के दिन शस्त्र, विष, दुर्घटना से मृतों का श्राद्ध होता है चाहे उनकी मृत्यु किसी अन्य तिथि में हुई हो. यदि चतुर्दशी तिथि में सामान्य मृत्यु हुई हो तो उनका श्राद्ध अमावस्या तिथि में करने का विधान है. अपमृत्यु वालों का श्राद्ध |
17 सितंबर | बृहस्पतिवार | अमावस का श्राद्ध, अज्ञात तिथि वालों का श्राद्ध, सर्वपितृ श्राद्ध |
श्राद्ध वाले दिन पितृ स्तोत्र, पितृसूक्त अथवा रक्षोघ्न सूक्त का पाठ करना चाहिए. यदि आपकी श्रद्धा है इन पाठों को करने की तब आप नीचे लिंक कर क्लिक कर सकते है :-
https://chanderprabha.com/2017/02/05/pitrustotra-at-the-time-of-shraddh/