श्रीदेव्या: प्रात:स्मरणम्

Posted by

durga devi

प्रात: स्मरामि शरदिन्दुकरोज्ज्वलाभां सद्रत्नवन्मकरकुण्डलहारभूषाम् ।

दिव्यायुधोर्जितसुनीलसहस्त्रहस्तां रक्तोत्पलाभचरणां भवतीं परेशाम् ।।1।।

हिन्दी अनुवाद :

जिनकी अंगकान्ति शारदीय चन्द्रमा की किरण के समान उज्जवल है, जो उत्तम रत्नद्वारा निर्मित मकराकृति कुण्डल और हार से विभूषित हैं, जिनके गहरे नीले हजारों हाथ दिव्यायुधों से सम्पन्न हैं तथा जिनके चरण लाल कमल की कान्ति-सदृश अरुण हैं, ऎसी आप परमेश्वरी का मैं प्रात:काल स्मरण करता/करती हूँ.

 

प्रातर्नमामि महिषासुरचण्डमुण्ड-शुम्भासुरप्रमुखदैत्यविनाशदक्षाम् ।

ब्रह्मेन्द्ररुद्रमुनिमोहनशीललीलां चण्डीं समस्तसुरमूर्तिमनेकरूपाम् ।।2।।

हिन्दी अनुवाद :

जो महिषासुर, चण्ड, मुण्ड, शुम्भासुर आदि प्रमुख दैत्यों का विनाश करने में निपुण हैं, लीलापूर्वक ब्रह्मा, इन्द्र, रुद्र और मुनियों को मोहित करने वाली हैं, समस्त देवताओं की मूर्तिस्वरूपा हैं तथा अनेक रूपों वाली हैं, उन चण्डी को मैं प्रात:काल नमस्कार करता/करती हूँ.

 

प्रातर्भजामि भजतामभिलाषदात्रीं धात्रीं समस्तजगतां दुरितापहन्त्रीम् ।

संसारबन्धनविमोचनहेतुभूतां मायां परां समधिगम्य परस्य विष्णो: ।।3।।

।।इति श्रीदेव्या: प्रात: स्मरणं संपूर्णम्।।

 

हिन्दी अनुवाद :

जो भजन करने वाले भक्तों की अभिलाषा को पूर्ण करने वाली, समस्त जगत का धारण-पोषण करने वाली, पापों को नष्ट करने वाली, संसार बंधन के विमोचन की हेतुभूता तथा परमात्मा विष्णु की परा माया हैं, उनका ध्यान करके मैं प्रात:काल भजन करता/करती हूँ.