किसी गाँव में एक छोटी सी लड़की रहती थी. वह रोज नियम से नितनेम बाबा की पूजा करती थी. उसकी भाभी रोज उससे कहती कि काम की ना काज की बस सारा दिन नितनेम-नितनेम कहती रहती है. भाभी की कड़वी बातें सुनकर एक दिन वह अपनी एक टाँग पर खड़ी हो गई और बोली – हे नितनेम बाबा ! अगर मैं सच्चे मन से आपकी पूजा करती हूँ तो आप सोने की मूर्ति बनकर मंदिर में विराजो. यह बात सुनकर भगवान का सिंहासन भी डोल गया.
भगवान सोचने लगे कि एक छोटी सी लड़की तप कर रही है तो नितनेम बाबा सोने की मूर्ति बनकर मंदिर में विराजमान हो गए. जब लड़की ने आँख खोली तो देखा कि नितनेम बाबा की सोने की मूर्ति आले में रखी है. अब उसने आवाज अब उसने आवाज लगाई – भाभी देख लो नितनेम बाबा, माँ देखो नितनेम बाबा, माँ भी अब नितनेम बाबा को ध्यावे और भाभी भी नितनेम बाबा को ध्यावे.
हे नितनेम बाबा जैसे आपने उस छोटी लड़की का सत रखा. कहने वाला का भी, सुनने वाले का भी और हुंकारा भरने वालों का भी.
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