मांगलिक योग – एक विश्लेषण

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manglik yog
दो तरह के विचार मांगलिक योग को लेकर हैं :

 

उत्तर भारतीय लोगों के अनुसार पहले, चौथे, सातवें, आठवें व बारहवें भाव में मंगल की उपस्थिति से मांगलिक योग बनता है, लेकिन दक्षिणी भारतीय मतानुसार इन भावों के अतिरिक्त दूसरे भाव को भी मांगलिक योग में शामिल किया गया है. इसका कारण यही हो सकता है कि जिस तरह से लग्न से अष्टम भाव मांगल्य सुख के लिए देखा जाता है ठीक उसी तरह सप्तम से अष्टम भाव अर्थात दूसरा भाव जीवनसाथी के मांगल्य सुख के लिए होता है.

 

जन्म कुंडली का सातवाँ भाव जीवनसाथी के लिए देखा जाता है और आठवें भाव से मांगल्य सुख का आंकलन किया जाता है. मंगल की गिनती सबसे अधिक पाप ग्रह के रुप में की जाती है और ग्रहों में मंगल को सेनापति का ओहदा मिला हुआ है. इसलिए जन्म कुंडली में मंगल जिस भाव में स्थित होगा वहाँ तोड़्-फोड़ मचाने का काम करेगा. मंगल को सबसे अधिक ऊर्जावान भी माना गया है. अब मंगल के ऊर्जावान होने व तोड़ – फोड़ मचाने से मांगलिक योग का क्या लेना-देना हो सकता है. आइए इसे समझने का प्रयास करते हैं.

 

जन्म कुंडली के सप्तम भाव से जीवनसाथी को देखा जाता है और अष्टम भाव से मांगलिक सुख का विचार किया जाता है. लग्न में मंगल जब स्थित होता है तब सप्तम दृष्टि से सातवें भाव को देखता है. चतुर्थ भाव में मंगल के स्थित होने से उसकी चौथी दृष्टि सप्तम भाव पर पड़ती है. सप्तम में तो स्वयं ही स्थित होकर उसे प्रभवित करता है और अष्टम भाव अर्थात मांगल्य सुख के भाव में मंगल को शुभ नहीं माना जाता है. बारहवें भाव में स्थित होकर मंगल फिर अपनी आठवीं दृष्टि सप्तम भाव पर डालता है. इन सभी स्थानों पर मंगल होने से सातवाँ भाव प्रभावित होता है.
सातवाँ भाव मंगल से प्रभावित होने पर जीवनसाथी में मंगल जैसे गुण आते हैं जिससे एक व्यक्ति के मांगलिक और दूसरे के मांगलिक ना होने पर दोनों के भीतर ऊर्जा का स्तर समान नहीं रहता है. जब दोनों में ऊर्जा का स्तर समान नहीं होगा तब निभेगी कैसे?? इसलिए दोनों व्यक्तियों का मांगलिक होना आवश्यक माना गया है.