राहुपञ्चविंशतिनामस्तोत्रम
राहुर्दानवमन्त्री च सिंहिकाचित्तनन्दनः । अर्धकायः सदा क्रोधी चन्द्रादित्यविमर्दनः ।।1।। रौद्रो रुद्रप्रियो दैत्यः स्वर्भानुर्भानुभीतिद:। ग्रहराजः सुधापायी राकातिथ्यभिलाषुक: ।।2। कालदृष्टिः कालरूपः श्रीकण्ठहृदयाश्रय:
Astrology, Mantra and Dharma
राहुर्दानवमन्त्री च सिंहिकाचित्तनन्दनः । अर्धकायः सदा क्रोधी चन्द्रादित्यविमर्दनः ।।1।। रौद्रो रुद्रप्रियो दैत्यः स्वर्भानुर्भानुभीतिद:। ग्रहराजः सुधापायी राकातिथ्यभिलाषुक: ।।2। कालदृष्टिः कालरूपः श्रीकण्ठहृदयाश्रय:
आरती युगल किशोर की कीजै, राधे धन न्यौछावर कीजै ।।टेक।। रवि शशि कोटि बदन की शोभा, तेहि निरख मेरा
“हरि” का अर्थ विष्णु भगवान जी से है और “हर” का अर्थ शिव से है. इस स्तोत्र में दोनों
मंगल – मूरति मारुत – नंदन । सकल – अमंगल – मूल – निकंदन ।। पवनतनय संतन – हितकारी ।।
भये प्रकट कृपाला, दीनदयाला, कौशिल्या हितकारी। हरषित महतारी, मुनिमन हारी, अदभुत रूप बिचारी।। लोचन अभिरामा, तनु घनश्यामा, निज आयुध भुजचारी।